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बंदिशे अल्फाज ही नहीं काफी ग़ज़ल के लिए ,
खु जिगर का भी चाहिए असर के लिए
.....मीर साहब
WELCOME TO
MY ...DIL SE
जब कभी रूह पर कुछ बोझ सा बढ़ जाता है, और सांसो में भारीपन आ जाता है, अपना ही दिमाग वो सोचता है जो अपना नहीं है, ऐसा दर्द होता है जिसका कोई इलाज नहीं है , आँखे वो देखती है जो है ही नहीं और अस्क बहते है उस के लिए जिस को उनसे कोई लगाव ही नहीं है | तब कागज पर बिखरी वो सब्दो की तस्वीरें होती है ........................'दिल से '

अभी अभी 'दिल से' आया है...एक सेर
पूछा खुदा ने .. काफ़ी क़त्ल किये हैं उस जहाँ में
मैं बोला...आशिक़-ए-वतन हूँ ,हर सज़ा मंज़ूर है
आज भी खड़ी हैं रूह-ए-आशिक़ इन सरहदों पर,
आज़माना है किसी को ज़ोर अपना..,तो आये....”
शहीद कैप्टन कपिल कुंडू

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