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बड़ी संजीदगी से उतरा है तुम्हे इन पन्नो मे,
कोइ पढ़ के वहा वहा करे, ये मुझे मंजूर नहीं |
एक-एक करके सजाया है दिल मे,
अब कोई अश्क आख से गिरे, ये मुझे मंजूर नहीं |
बिजलियों ने नहीं आसिया मने खुद जलाया है ,
आसमा से कोई डराए,ये मुझे मंजूर नहीं |
दस्ता मेरी किताबो मे बंद ही अच्छी ,
कोई चौराहे पे सुनाये ,ये मुझे मंजूर नहीं |
जिन्दगी कसमकस है चार दिन की,
सिले-सिक्वे करे कोई ,ये मुझे मंजूर नहीं |
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