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यक़ीनन सच वहीं है जो कानो को भाया करता है |
फिर ये कौन है जो झूठी अफवा फैलाया करता है |
परवानो को जलाने वाली समां को था जलने पे गरूर ,
झांक कर देखा तो जाना की कौन इसे जलाया करता है |
मुक्क़दर खुद चिरागो का, भरोसे होता है हवाओ के,
फिर महफ़िल को ये कौन रोसन किया करता है |
बूद खु की इक उम्रदराज रुखसार को किये रही रोसन,
सिसकिया सुन के मेरा आसिक बस दुआ किया करता है |
वतन को मेरे नज़र से मेरी देख और फिर मुझे देख ,
समझ जायेगा किस बात पे ये अकड़ा किया करता है |
जब तलक रूबरू था मै मेरे महबूब के, मुझ से बड़ा दीवाना ना था कोई
नज़र पलट कर देखा तो जाना वतन पे मरने वालो का हुजूम हुआ करता है ||
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